
NDRF Rescues Three Women Devotees from Drowning in Ganga at Varanasi’s Man Mandir Ghat
काशी में दिखा एनडीआरएफ का साहस और समर्पण, तीन महिला श्रद्धालुओं को डूबने से बचाया
वाराणसी, 18 मई 2025
गंगा नगरी काशी में आज का दिन एक अद्भुत मिसाल बन गया — जब तीन महिला श्रद्धालुओं की जान संकट में थी, तब मानवता, तत्परता और साहस ने मिलकर एक नई कहानी लिख दी।
यह घटना शनिवार सुबह मण मंदिर घाट पर उस समय घटी, जब मध्यप्रदेश के मऊगंज ज़िले के धरमपुरा गाँव से आई तीन महिला श्रद्धालु गंगा में पवित्र स्नान कर रही थीं। श्रद्धा में लीन होकर गहरे पानी की ओर बढ़ती चली गईं और देखते ही देखते बहाव में बहने लगीं।
डूबने की स्थिति में पहुंच चुकी महिलाओं की पहचान इस प्रकार हुई:
सुमन त्रिपाठी (55 वर्ष)
पूजा शुक्ला (36 वर्ष)
सरस्वती त्रिपाठी (28 वर्ष)
गंगा के तेज बहाव ने उन्हें अपने कब्ज़े में लेना शुरू कर दिया, और घाट पर मौजूद लोगों की आँखों के सामने ही तीनों महिलाएं मदद के लिए चिल्लाने लगीं। कुछ ही पलों में घटनास्थल पर अफरा-तफरी मच गई। लोग सहायता के लिए दौड़े, लेकिन बहाव इतना तीव्र था कि कोई सामान्य व्यक्ति उनके पास नहीं पहुँच पा रहा था।
इसी बीच वहां तैनात एनडीआरएफ की 11वीं वाहिनी, वाराणसी की टीम ने स्थिति की गंभीरता को तुरंत भांप लिया। उप महानिरीक्षक श्री मनोज कुमार शर्मा के नेतृत्व में घाटों पर मुस्तैदी से तैनात यह टीम, हमेशा की तरह सतर्क और तैयार थी।
एनडीआरएफ के प्रशिक्षित और बहादुर जवानों ने बिना एक पल गंवाए, अपनी जान की परवाह किए बिना गंगा में छलांग लगा दी। अत्याधुनिक बचाव तकनीक और सटीक तैराकी कौशल का उपयोग करते हुए जवानों ने क्रमशः तीनों महिलाओं तक पहुँच बनाई और उन्हें सुरक्षित किनारे तक ले आए।
घटनास्थल पर मौजूद सैकड़ों लोगों ने राहत की साँस ली और एनडीआरएफ के जवानों के साहसिक कार्य के लिए तालियों की गड़गड़ाहट से घाट गूंज उठा। बचाई गई महिलाएं रोती हुईं अपने रक्षकों को धन्यवाद कहती रहीं — यह पल मानवता की सुंदर तस्वीर बन गया।
उप महानिरीक्षक मनोज कुमार शर्मा ने घटना के बाद एक संक्षिप्त बयान में कहा,
“काशी के घाटों पर एनडीआरएफ की तैनाती सिर्फ एक औपचारिकता नहीं है। यह जनता के जीवन की रक्षा के लिए हमारा संकल्प है। हमारी टीम हर परिस्थिति के लिए तैयार है, और आज का दिन इसका प्रमाण है।”
यह घटना एक बार फिर यह सिद्ध करती है कि एनडीआरएफ केवल आपदा प्रबंधन की एक इकाई नहीं, बल्कि यह आम जनता की सुरक्षा, विश्वास और आश्वासन का जीवंत प्रतीक बन चुकी है।
हर दिन एनडीआरएफ के ये वीर जवान न सिर्फ आपदाओं से लड़ते हैं, बल्कि उन अनकहे संकटों से भी जूझते हैं जहाँ हर पल एक जीवन की डोर होती है।
काशी के घाटों ने आज एक नया इतिहास देखा — साहस, समर्पण और सेवा का।
एनडीआरएफ: जब हर साँस मायने रखती है।
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